राजनीतिक हस्तक्षेप ने अतिक्रमण को दिया बल,महापौर ने रुकवाई निगम की कार्रवाई, बालको पर ठीकरा, जनता असमंजस में

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कोरबा-बालकोनगर(आधार स्तंभ) :  बालको जोन के परसाभाठा चौक पर अतिक्रमण हटाने नगर निगम के अभियान को उस समय झटका लगा, जब खुद महापौर मौके पर पहुंचीं और हस्तक्षेप कर कार्रवाई पर ब्रेक लगा दिया। इस घटना ने न केवल निगम की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि अतिक्रमणकारियों के हौसले को भी परोक्ष रूप से बढ़ावा दिया है। इसके कारण पहले से ही अव्यवस्थित यातायात अब और बिगड़ने की आशंका है, साथ ही दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ गया है।

 खतरनाक हो चुका है परसाभाठा चौक

परसाभाठा चौक पिछले कई वर्षों से अवैध कब्जों की मार झेल रहा है। हर दिन, जाम व हादसों की संभावना के साथ गुजर रहा है। सड़क के दोनों किनारे दुकानों और ठेलों का अतिक्रमण है तो वहीं भारी वाहनों की लगातार आवाजाही बनी ही रहती है। इसी चौक से होकर रूमगरा तथा रिसदी की ओर भारी वाहनों का परिचालन होता है। सामान्य वाहन बस, टैक्सी भी गुजरते हैं। बालको कर्मियों के आवागमन का भी मार्ग है। यहां नो-पार्किंग जोन में गाड़ियां खड़ी रहती हैं तो पैदल यात्रियों के लिए जगह नहीं बचती। स्थानीय पुलिस के साथ-साथ ट्रैफिक पुलिस की निगरानी कमजोर कही जा सकती है।
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अतिक्रमण की कैद में हैं “आजाद”

परसाभाठा चौक जिसे चंद्रशेखर आजाद चौक के नाम से भी जाना जाता है और नामकरण किया गया है, एवं यहां चंद्रशेखर आजाद की आदमकद मूर्ति भी स्थापित की गई है। किंतु इस चौक के चारों तरफ भी अतिक्रमण का आलम है, गंदगी मौजूद है। चौक को अतिक्रमण मुक्त कराने के साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा को सम्मान देते हुए चौराहे का सौंदर्यीकरण भी कराया जाना है।

यह है घटनाक्रम :

नगर निगम आयुक्त आशुतोष पांडेय ने हाल ही में बालको क्षेत्र का निरीक्षण किया था। निरीक्षण के दौरान उन्होंने परसाभाठा चौक की दुर्दशा देखकर अवैध कब्जे हटाने के निर्देश दिए। आजाद चौक की दुर्दशा भी उनके संज्ञान में लाई गई। नोटिस देने के बाद भी जब दुकानदारों ने जगह खाली नहीं की, तो 3 सितम्बर बुधवार को सुबह निगम की टीम दल-बल के साथ मौके पर पहुंची। कुछ तंबुओं को हटाया ही था कि व्यापारी लामबंद हो गए और महापौर संजू देवी राजपूत को फोन कर कार्रवाई रुकवाने की गुहार लगाई। कुछ ही देर में महापौर मौके पर पहुंचीं। उन्होंने देखा कि उनका ही अमला तोड़-फोड़ में लगा है तो कार से उतरे बिना ही गाड़ी में बैठे-बैठे निगम कर्मचारियों को कार्रवाई रोकने का आदेश दे दिया। निगम की टीम के लिए यह अप्रत्याशित था, वे कार्रवाई बीच में रोक कर बैरंग लौट गये

 बालको मुफ्त में बदनाम हुआ, फोड़ा ठीकरा

इधर,महापौर से जब उपस्थित मीडिया कर्मियों ने पूछा कि उन्होंने निगम की कार्रवाई क्यों रुकवाई, तो उन्होंने आश्चर्यजनक इसका ठीकरा बालको प्रबंधन पर फोड़ दिया। उनका कहना था कि कंपनी छत्तीसगढ़ के व्यापारियों के पेट पर लात मार रही है। महापौर का यह बयान नया विवाद लेकर आया, क्योंकि बालको प्रबंधन ने इस कार्रवाई से अपना किसी भी तरह का संबंध होने से इनकार कर दिया है। बालको के अधिकारी ने कहा कि“अतिक्रमण हटाने की यह कार्रवाई नगर निगम की थी, बालको की नहीं।” इससे यह सवाल और गहरा हो गया कि महापौर ने बालको पर ठीकरा क्यों फोड़ा? यह सब तब हो रहा है जब, चौक के अतिक्रमणकारियों को बाजार में व्यवस्था दी ही जा रही है और बालको भी अपने दायित्व के तहत शेड निर्माण आदि कार्य में निगम आयुक्त के आग्रह पर आर्थिक मदद के लिए तत्पर है। वैसे, इस तरह का ठीकरा एसईसीएल,एनटीपीसी, सीएसईबी पर क्यों नहीं फूटता? जबकि इनके क्षेत्र में भी तो व्यापक अतिक्रमण हो रखा है।

 

⏩ क्या संदेश गया?

इस पूरे घटनाक्रम को लेकर शहर भर में चर्चा है कि महापौर के इस दखल से न केवल निगम अधिकारियों का मनोबल टूटा है, बल्कि गलत संदेश भी गया है कि राजनीतिक संरक्षण मिलने पर नियम-कानून बेमानी हैं। इसके नतीजे में आने वाले दिनों में परसाभाठा चौक ही नहीं अन्य सार्वजनिक स्थलों पर अतिक्रमण रूपी अव्यवस्था के रूप में और बढ़ सकती है।

अब जनता का सवाल, किसकी सुनें ?

यह कोई अकेले परसाभाठा चौक का ही नहीं और कोई पहला घटनाक्रम भी नहीं है, बल्कि इसके पहले भी अन्य राजनीतिक हस्तक्षेप ने कई अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई पर रोक लगाई है। अतिक्रमणकारियों के कारण उत्पन्न समस्याओं से परेशान जनता के मन में सवाल सहज ही उभरता है कि क्या सत्ता और प्रशासन के बीच समन्वय का अभाव है? अतिक्रमण हटाये बिना शहर/जिला को सुव्यवस्थित कैसे बनाया जा सकेगा? जबकि व्यवस्थित वेण्डर ज़ोन विकसित करने पर निगम क्षेत्र में आयुक्त आशुतोष पांडेय के प्रयासों से अच्छा काम हो रहा है। स्पष्ट है, यह विवाद सिर्फ एक कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नगर निगम की नीतियों और नेतृत्व की प्राथमिकताओं पर गंभीर प्रश्नचिह्न भी है।

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