कुसमुंडा खदान : तेरह साल पुरानी कबाड़ बस में ढोए जा रहे एसईसीएल कामगार, अंदर बरसती बारिश की धार

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कोरबा (आधार स्तंभ): एसईसीएल कुसमुंडा क्षेत्र में कामगारों को खदान से कार्यस्थल तक लाने-ले जाने के लिए प्रबंधन द्वारा बस और चारपहिया वाहनों की व्यवस्था की जाती है। यह व्यवस्था कर्मचारियों की सुरक्षा और सुविधा को ध्यान में रखकर की जाती है, लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट सामने आ रही है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, प्रबंधन और ठेकेदारों की मिलीभगत से तेरह साल पुरानी बसों को खदान में चलवाया जा रहा है, जिनकी हालत इतनी खस्ताहाल है कि बारिश में बस के अंदर ही पानी की धार बहने लगती है।

सूत्र बताते हैं कि हाल ही में नए टेंडर की प्रक्रिया में देरी होने के चलते प्रबंधन ने रिक्विजिशन व्यवस्था (अस्थायी बस उपलब्ध कराने) के तहत वाहनों की आपूर्ति की अनुमति दी थी। नियमों के मुताबिक, इस व्यवस्था में भी नए सत्र के समकक्ष अच्छी कंडीशन की बसें लगनी चाहिए थीं। लेकिन कुछ ठेकेदारों ने अधिकारियों की मिलीभगत से तेरह साल पुरानी जर्जर बसें खदान में लगा दीं।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिस बस को लगाया गया, वह पूरी तरह से कबाड़ की तरह है। अंदर छत से पानी टपकता नहीं, बल्कि धार की तरह बहता है। कर्मचारियों की सुरक्षा पर इस तरह का खिलवाड़ एसईसीएल के लाखों रुपए खर्च होने के बावजूद हो रहा है।

सूत्रों से यह भी सामने आया है कि इस बस का एफआरआईडी (FRID) के. अर्जुन मुखर्जी के नाम पर बना हुआ है। सवाल यह उठता है कि आखिर प्रबंधन आंख मूंदकर ऐसे वाहनों को कैसे अनुमति दे देता है, बिना उनकी फिटनेस और कंडीशन जांचे?

इस मामले पर जब ई एंड एम विभाग के मुख्य अधिकारी प्रकाश नंदी से बात की गई तो उन्होंने साफ कहा – “जब पेपर आया तो हमने साइन कर दिए। गाड़ी की फिटनेस देखना हमारा काम नहीं है।”

अब बड़ा सवाल यह है कि कर्मचारियों की जान से जुड़ी इस लापरवाही पर एसईसीएल का उच्च प्रबंधन क्या कदम उठाएगा? और आखिर कब तक चंद पैसों के लालच में कामगारों की सुरक्षा के साथ इस तरह का खिलवाड़ होता रहेगा?

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