कोरबा(आधार स्तंभ) : कोरबा जिला ही नहीं बल्कि दूसरे जिलों और छत्तीसगढ़ प्रदेश के साथ-साथ अविभाजित मध्य प्रदेश के भी निवासियों की अगाध आस्था का केंद्र बिंदु मां सर्वमङ्गला मंदिर में चैरिटेबल ट्रस्ट आखिर कब गठित होगा। यह सवाल यहां ट्रस्ट बनाने को लेकर वर्षों से होते प्रयासों के बीच से एक बार फिर उठा है, जब जिले के अन्य प्रमुख मंदिरों में ट्रस्ट की व्यवस्था कर दी गई है/की जा रही है। पहाड़ ऊपर स्थित चैतुरगढ़ की मां महिषासुर मर्दिनी देवी का मंदिर हो या कोरबा-चाम्पा मार्ग पर अवस्थित मां मड़वारानी का मंदिर हो, यहां ट्रस्ट गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। चैतुरगढ़ में भी ट्रस्ट बन चुका है।मड़वारानी में ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित हो चुका है और गठन प्रक्रिया जल्दी पूरी कर ली जाएगी दूसरी तरफ मां सर्वमंगला देवी मंदिर में ट्रस्ट गठन को लेकर वर्षों से चले आ रहे प्रयासों को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है।
वर्ष 2009 में प्रशासनिक कार्रवाई शुरू की गई और छत्तीसगढ़ के राजपत्र में 23 सितंबर 2009 को प्रकाशन कराया गया। मां सर्वमङ्गला देवी चेरिटेबल ट्रस्ट, सर्वमङ्गला मंदिर के लिए नायब तहसीलदार जे एल यादव के साथ प्रमुख गणमान्यजनों की बैठक भी हुई। उस समय मंदिर परिसर में स्थित संपत्तियों का मोटा-मोटी आंकलन करीब 50 लाख (चल-अचल संपत्ति) किया गया।
कटघोरा अनुविभाग के अंतर्गत आने वाले मां सर्वमङ्गला मंदिर में प्रमुख धार्मिक आयोजनों के अवसर पर जहां हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं,सैकड़ों सर्व मनोकामना ज्योति कलशों का प्रज्ज्वलन विदेश तक से कराया जाता है। सामान्य दिनों में भी मां के दरबार में सैकड़ों भक्त माथा टेकने पहुंचते हैं और माता के दरबार में हाजिरी लगाते हुए भेंटें भी चढ़ाते हैं,गुप्तदान भी होता है। उनके अलावा मंदिर परिसर में अन्य धर्मप्राण लोगों के द्वारा भी अपने-अपने पूर्वजों की स्मृति में विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिरों का निर्माण कराया गया है। इस मंदिर से इन सभी की भी आस्था जुडी हुई है। ये लोग भी चाहते हैं की मां सर्वमङ्गला देवी मंदिर में ट्रस्ट का गठन हो ताकि मंदिर के चहुंमुखी और बहुमुखी विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके।
हालांकि मौजूदा मंदिर व्यवस्थापक ने निजी तौर पर मंदिर से होने वाली आय से ही अनेक तरह के कार्य कराए हैं लेकिन इनमें पारदर्शिता का अभाव लगातार बना हुआ है, अन्यथा यह एक बेहतर धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।
इसके साथ ही साथ आदिशक्ति मां सर्वमङ्गला मंदिर के आसपास के परिसर जो कि अपनी प्राचीनता का आभास कराते हैं, उनमें मंदिर के निकट स्थित एक गुफा भी है जिसका एक सिरा कमला नेहरू महाविद्यालय (पुराना रानी महल) के अंदर निकलता है। ऐसा बताते हैं कि आपातकाल के दौर में राज परिवार के द्वारा महल के भीतर से एक सुरंग बनवाई गई थी जो मंदिर के पीछे गुफा से होते हुए बाहर निकलती है। यह अपने आप में प्राचीन होने के साथ-साथ शोध आदि का विषय भी हो सकता है। यहां गुफा में प्राचीनतम भगवान शिव, हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित है लेकिन विकास की अनियमित दौड़ में आसपास के क्षेत्र में हो रहे निर्माण कार्यों के कारण इस ऐतिहासिक धरोहर को नष्ट करने का काम बड़ी तेजी से हुआ है। ऐसे धरोहरों को बचाने की पुरजोर कोशिश हो सकती थी, यदि मंदिर में कोई ट्रस्ट बना होता।
मंदिर में आयोजित होने वाली विभिन्न धार्मिक गतिविधियों, अनुष्ठान और धर्मप्राण लोगों से मां के दरबार में चढ़ने वाले चढ़ावा आदि के संबंध में कोई भी हिसाब-किताब संभवत: नहीं है आम जनमानस को भी इसकी कोई जानकारी नहीं है। ट्रस्ट बन जाने से सारा कुछ पारदर्शी तरीके से संभव होगा। मंदिर में ट्रस्ट बनाने का प्रयास करने वालों का यह भी कहना है कि इस ट्रस्ट में भले ही क्यों ना राजपुरोहित स्व. अनिल पांडेय के परिवार से जुड़े उनके पारिवारिक सदस्य ही शामिल हों लेकिन मंदिर निर्माताओं के साथ नगर के विशिष्ट गणमान्यजनों को भी शामिल करते हुए ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए। जिला प्रशासन को भी इस तरफ अपेक्षित ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि इस दिशा में 2009 में हुए प्रयास कालांतर से अब तक पूर्ण रूप से ठप्प पड़ गए हैं।