कोरबा(आधार स्तंभ) : छत्तीसगढ़ के कोल खनन घोटाले में बड़े आपराधिक पेंच का खुलासा हुआ है। कोरबा में बतौर कलेक्टर IAS रानू साहू ने कोल माफिया सूर्यकांत तिवारी के साथ मिलकर कई बड़े आर्थिक घोटालों को अंजाम दिया है। लेकिन अब एक नए मामले के उजागर होने से दोनों के खिलाफ नई FIR की बुनियाद सामने आई है। एक चौंकाने वाले प्रकरण में दोनों आरोपियों ने ”अवैध कोल वासरी खरीदी घोटाले ” को अंजाम देकर छत्तीसगढ़ शासन के जमीन ख़रीदी -बिक्री संबंधी क़ायदे – कानूनों की धज्जियाँ उड़ा दी।

पुख्ता जानकारी के मुताबिक एक घंटे की कवायत के भीतर कोल घोटाले के दोनों आरोपियों ने कोल वासरी खरीदी की रजिस्ट्री पर सरकारी मुहर लगवा दी थी। इस दौरान रजिस्ट्री के सौदे को ग़ैरक़ानूनी करार देकर सरकारी प्रक्रिया का पालन नहीं किये जाने पर तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू ने कोरबा के तत्कालीन सीनियर रजिस्ट्रार को कई घंटो तक थाने में बैठवा दिया था। इसके बाद असिस्टेंट रजिस्ट्रार के मार्फ़त कोल वासरी की रजिस्ट्री कौड़ियों के दाम कराई गई थी।

इस अवैध सौदे के भागीदारों में सूर्यकाँत तिवारी के अलावा कोल घोटाला कारोबारी सुनील अग्रवाल भी शामिल बताये जाते है। यह भी बताया जाता है कि कोल वासरी के रकबे में एक बड़ा हिस्सा इलाक़े के आदिवासियों के नाम पर दर्ज था। लेकिन पद और प्रभाव का दुरुप्रयोग करते हुए रानू साहू ने भू – विक्रय की प्रक्रिया बगैर पूर्ण किये रजिस्ट्री करवा दी थी। इस तरह से अरबों की कोल वासरी की कौड़ियों के दाम रजिस्ट्री होने से छत्तीसगढ़ शासन को करोडो के टैक्स रूपी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है।

जानकारी के मुताबिक कोरबा जिला आदिवासी बाहुल्य होने के साथ -साथ संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल इलाकों में चिन्हित है। बावजूद इसके कोल वासरी के सौदे में पीड़ित आदिवासियों के हितों को दरकिनार कर दिया गया था। आदिवासी जमीन की ख़रीदी -बिक्री संबंधी प्रक्रिया का पालन किये बगैर अरबों की कोल वासरी के सौदे को महज़ चंद लाख रुपयों ( लगभग 120 करोड़ ) में सिमटा देने से पूरा प्रदेश हैरत में बताया जा रहा है। प्रशासनिक गलियारों में बगैर NOC आदिवासी जमीन का हस्तांतरण का मामला सुर्ख़ियों में है। बताया जाता है कि कोल वासरी की रजिस्ट्री के लिए जमीन का सीमांकन, बटांकन, भू -विक्रय की प्रक्रिया और अन्य गड़बड़ियों को मात्र 1 घंटे के भीतर निपटा दिया गया था।

पीड़ित आदिवासी परिवार सरकारी प्रक्रिया का पालन सुनिक्षित किये जाने की राह तकते रहे। जबकि दूसरी ओर आरोपियों ने अवैध कमाई से हासिल मोटी रकम का एक बड़ा हिस्सा इस सौदेबाजी में खपा दिया। सूत्रों के मुताबिक कई पीड़ितों ने मामले की शिकायत कोरबा के मौजूदा कलेक्टर कार्यालय में भी की थी, लेकिन पीड़ितों को बेरंग लौटाए जाने की जानकारी भी सामने आई है। शेड्यूल एरिया (अनुसूचित क्षेत्र) में अवैध सौदों से कई आदिवासी परिवार पीड़ित बताये जाते है, जबकि ऐसे इलाको को भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत विशेष सुरक्षा प्रदान की गई है, विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) के हितों की रक्षा के लिए विशेष प्रशासनिक और कानूनी प्रावधान लागू होते हैं।

यह भी बताया जाता है कि कोल वासरी की गैरकानूनी रजिस्ट्री के लिए क्रेता -विक्रेता समेत अन्य सरकारी सेवकों ने कई हथकंडे अपनाये थे, जो गंभीर अपराधों की श्रेणी में बताये जाते है। ऐसी ही एक शिकायत में बताया गया है कि कोरबा के तत्कालीन रजिस्ट्रार श्री कौशिक को कई घंटो तक स्थानीय थाने में बैठाकर प्रताड़ित किया गया था। उनका कसूर सिर्फ यह बताया जा रहा है कि उन्होंने कोल वासरी की रजिस्ट्री में कानून -क़ायदे के तहत प्रक्रिया अपनाने पर जोर दिया था। यह भी बताया जाता है कि श्री कौशिक के इंकार करने पर पवन मरावी नामक सब रजिस्ट्रार ने इस सौदे को क़ानूनी रूप दिया था।उधर कोरबा के चांपा मार्ग में कोथारी गांव के पास स्थित कोल वाशरी मां मड़वारानी कोल बेनीफिकेशन लिमिटेड को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सील करने के बाद अदालती आदेश पर अपने कदमो पर विराम लगा दिया है।

जानकारी के मुताबिक यह वाशरी कोयला कारोबारी राजकुमार अग्रवाल की संपत्ति बताई जाती थी। कांग्रेस कार्यकाल में कोल माफिया सूर्यकांत ने इसे अपने कब्जे में लेने के लिए सबसे पहले इसे खुद के भाईयों के नाम पर सिर्फ कागजो में ख़रीदा -बेचा था। ईडी की जांच शुरू होते ही उसे फिर एक अन्य व्यक्ति के नाम पर स्थानांतरित किया गया था। इस कोल वाशरी की कई टुकड़ों में खरीदी -बिक्री कर सरकारी तिजोरी पर करोड़ो की चपत लगाई गई।

छत्तीसगढ़ के 700 करोड़ से ज्यादा के बहुचर्चित कोयला लेव्ही घोटाले की जाँच अब सीबीआई के हवाले है। इस केस में कोल वासरी के विक्रेता कारोबारी सुनील अग्रवाल डायरेक्टर इंद्रमणि कोल ग्रुप को सुप्रीम कोर्ट से लगभग साल भर पूर्व जमानत प्राप्त हो चुकी है। उन्हें 11 अक्टूबर 2022 को ED ने गिरफ्तार किया था। निलंबित डिप्टी कलेक्टर सौम्या चौरसिया, निलंबित IAS रानू साहू और समीर विश्नोई के अलावा अन्य आरोपियों को भी अदालत ने जमानत पर रिहा कर दिया है। मुख्य आरोपी सूर्यकान्त तिवारी भी सुप्रीम कोर्ट से जमानत का लाभ प्राप्त करने वालो में शामिल हो गए है। उन्हें कल विशेष शर्तों के साथ जमानत दिए जाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है। फ़िलहाल, तमाम आरोपियों के खिलाफ ED विवेचना में जुटी है, उसकी जाँच सिर्फ मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों तक ही सीमित बताई जा रही है, जबकि ऐसे आरोपियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से IPC के तहत अपराध दर्ज करने को लेकर माथा -पच्ची का दौर, जारी बताया जाता है।