कोरबा जिले का दुर्गम पहाड़ी गांव जहां वर्षों से है स्कूल, बिजली, सड़क की दरकार 0 बार-बार आग्रह के बाद भी खण्ड शिक्षा अधिकारी के नहीं पहुंचे हैं कदम

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कोरबा,कोरबी-चोटिया(आधार स्तंभ) : छत्तीसगढ़ भले ही मध्यप्रदेश से अलग होकर आज 24 वां वर्ष के पायदान पर सत्ता की बागडोर संभाल रहा है लेकिन स्कूल शिक्षा, सड़क, बिजली, पानी,मुलभूत समस्याओ के प्रति आज भी अनेक जरूरतमंद इलाकों में गंभीरता नहीं दिख रही हैविशेष आदिवासीयो का दर्जा प्राप्त धनुहार समुदाय,के नौनीहालों को शिक्षा के मंदिर कहलाने वाले स्कूल, खोलने के लिए सरकारी प्रशासन के पास पिछले 2 वर्ष से चक्कर काटते दर-दर भटक रहे हैं।

कोरबा जिले के अंतिम छोर एवं पाली-तानाखार विधानसभा क्षेत्र के पोड़ी उपरोड़ा ब्लाक अंतर्गत दुर्गम पहाड़ी हसदेव बांगो डुबान क्षेत्र के चारों ओर से घिरे ग्राम पंचायत साखो का आश्रित गांव रनई पहाड़ भले ही काफी ऊंचा हो, लेकिन वहां के लोगों के हौसलों से ज्यादा ऊंचा नहीं है। आज के समय में इन सभी के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है कि सरकारी स्कूल नहीं होने के बावजूद ‘रनई पहाड़’ का एक भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं है। ‘रनई पहाड़’ जैसे देश के और कई आदिवासी गांव हैं जहां के बच्चों को इस तरह के स्ट्रक्चर की ज़रुरत है, जहां पर वे बिना किसी भय या अभाव के अपने सपनों को बुन सकें और एक सशक्त व सजग नागरिक की तरह अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी का निर्वाह कर सकें। रनई पहाड़ के लोग आधी लड़ाई जीत चुके हैं जिसमें बच्चों की शिक्षा और मध्यान्ह भोजन जैसी कई सुविधाएं शामिल हैं, बाकी सरकारी स्कूल और सरकारी अध्यापक को अपने गांव में लाने की वर्षों की लड़ाई अभी भी जारी है…।

जनपद सदस्य बजरंग पैकरा सतत प्रयासरत

मदनपुर के जनपद सदस्य बजरंग सिंह पैकरा ने हमारे समाचार सहयोगी को बताया कि पिछले डेढ़ वर्षों से गिद्धमुड़ी ग्राम पंचायत के आश्रित गांव खोटखोरी में कांग्रेस शासनकाल में शिक्षा मंत्री रहे डॉ.प्रेमसाय टेकाम को दिनांक 24/12/2021 को अपने लेटर पैड में नवीन प्राथमिक शाला खोलने की मांग रखी थी, जहां वर्तमान में 49 बच्चे 5 किलोमीटर दूर जंगल के रास्तों से सफर कर ठिरीआमा पढ़ने जा रहे थे। उन्होंने यह भी बताया कि खोटखोरी गांव के निवासी मिनीमाता बांगो डेम परियोजना से भू विस्थापित लोग हैं, जहां शासकीय पुनर्वास नीति के तहत मुलभूत सुविधा शिक्षा जैसे शासकीय विद्यालय आदि अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराने की मांग रखी गई थी लेकिन हुआ कुछ नहीं।

 पहाड़ी पर स्थित गांव रनई,की दास्तान –

पिछले ढेड़ वर्षों से बजरंग सिंह पैकरा शिक्षा, स्कूल, सड़क, बिजली, पानी के लिए लगातार जिला प्रशासन से गुहार लगाते आ रहे हैं, जनप्रतिनिधि के नाते उनके द्वारा हर संभव प्रयास कर कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी, जनपद पंचायत पोड़ी उपरोड़ा के प्रत्येक सप्ताहिक बैठकों में इस गंभीर समस्या को लगातार उठाया जाता रहा है। अब थक हार कर पोड़ी उपरोड़ा के नवपदस्थ राजस्व अनुविभागीय अधिकारी तुलाराम भारद्वाज के हाथ में 23 सितंबर को एक आवेदन पत्र देकर अपने जनपद पंचायत क्षेत्र के ग्राम पंचायत साखो के रनई, एवं ग्राम पंचायत गिद्धमुडी के आश्रित ग्राम खोटखोरी की गंभीर समस्या स्कूल शिक्षा, सड़क, बिजली, पानी की मांग की उपलब्धता के संबंध में मौका निरीक्षण हेतु संबंधित अधिकारियों के साथ आने का अनुरोध किया है। एसडीएम तुला राम भारद्वाज ने शीघ्र ही मदनपुर और ग्राम पंचायत साखो क्षेत्र में भ्रमण कर मूलभूत समस्याओं को हल करने का आश्वासन दिया है।

मिसाल है नीरा बाई की काबिलियत

नीरा बाई धनवार’, यदि एनआरबीसी टीचर्स के द्वारा कोई लापरवाही पाती हैं, तो वे तुरंत इसकी सूचना एस्पायर कार्यालय को देती हैं।

आज इस सेंटर को चलते हुए लगभग सवा साल से ज्यादा हो गए हैं और अब रनई पहाड़ का एक भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं है। भले ही इस गांव के पास अभी भी कोई सरकारी स्कूल नहीं है लेकिन एस्पायर और द हंस फाउंडेशन की मदद से उनके पास एक ऐसा ढांचा है जिसे ‘रनई पहाड़ का एनआरबीसी सेंटर’ कहा जाता है।

इस सेंटर के पास मध्यान्ह भोजन से लेकर ड्रेस, किताबें-कापियां, बच्चों के लिए किताबों की छोटी सी लाइब्रेरी और खाना बनाने के लिए एक दीदी भी हैं, जो बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन बनाती हैं। एनआरबीसी स्टूडेंट ‘राधा’ की मां ‘नीरा बाई’ कहती हैं कि, ‘हमने कभी नहीं सोचा था कि इस जंगल में, घंटों पहाड़ी चढ़ कर, कोई ऐसी संस्था आएगी जो बच्चों को पढ़ाएगी और नई दुनिया के बारे में बताएगी।’ ‘ओम प्रकाश’ (एनआरबीसी छात्र) के पिता ‘शिवराम’ कहते हैं, ‘हमारे बच्चों ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था, कैसे पढ़ाया जाता है? पढ़ने से क्या होता है? न उन्हें कुछ पता था और न ही हमें.., हमारे बच्चे बाहर से आए हुए अधिकारियों/लोगों को देखकर भागने लगते थे, लेकिन आज इस सेंटर की वजह से हमारे बच्चों की स्थिति बदल रही है और उनके साथ-साथ हम भी बदल रहे हैं।’

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