रायगढ़ में जातीय टिप्पणी का तमाशा, “छुआछूत” का नया नाटक!

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रिपोर्ट : कुलदीप चौहान रायगढ़

रायगढ़ (आधार स्तंभ) : रायगढ़ के तमनार तहसील में एक बार फिर “जातीय टिप्पणी” का पुराना राग अलापा गया है। “अठगंवा चौहान समाज अभय समिति” ने श्रीमती चन्द्रवती राठिया पर इल्ज़ाम लगाया है कि उन्होंने 26 जून 2025 को IAN24 मीडिया प्लेटफॉर्म पर “गांडा” और “घसिया” समुदायों के खिलाफ ज़हर उगला। ये बयान, समिति के मुताबिक, न सिर्फ अपमानजनक है, बल्कि छुआछूत की उस पुरानी बीमारी को फिर से हवा देता है, जिसे हम 21वीं सदी में भी ढो रहे हैं।

समिति के अध्यक्ष कार्तिक राम चौहान की अगुवाई में जिला प्रशासन को सौंपे गए ज्ञापन में ये साफ कहा गया कि ये टिप्पणी कोई हल्का-फुल्का मज़ाक नहीं, बल्कि सोची-समझी साजिश है, जो गांडा समाज को नीचा दिखाने और सामाजिक सौहार्द को तार-तार करने की कोशिश है। अब तो ये बयानबाज़ी इतनी आगे बढ़ गई है कि समाज की अगली पीढ़ियों को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

समिति ने प्रशासन को सात दिन का अल्टीमेटम दिया है—या तो श्रीमती राठिया पर कानूनी शिकंजा कसो, वरना गांडा समाज पूरे प्रदेश में आंदोलन की आग भड़काएगा। अब ये तो वक्त ही बताएगा कि ये ज्ञापन प्रशासन के टेबल पर धूल खाएगा या कोई ठोस कदम उठेगा।

रायगढ़ में तनाव का माहौल है, और हर तरफ से सामाजिक संगठनों की भौंहें तनी हुई हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या हम 2025 में भी “जात” और “छुआछूत” जैसे शब्दों के इर्द-गिर्द ही घूमते रहेंगे? क्या प्रशासन इस नौटंकी को खत्म करने के लिए तुरंत कदम उठाएगा, या फिर ये एक और “सामाजिक ड्रामा” बनकर रह जाएगा?

हे जिला प्रशासन! अगर सामाजिक समरसता का झंडा बुलंद करना है, तो इस छुआछूत के तमाशे पर तुरंत लगाम लगाइए। वरना, ये नाटक और लंबा चलेगा, और दर्शक बनकर ताली पीटने वालों की कमी नहीं!

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